रायगढ़। मध्यप्रदेश का अविभाजित रायगढ़ जिले में पत्थलगांव विधानसभा के गोलियागढ़ में पुलिसिया बरता को उजागर कर सुर्खियों में आने वाले आदिवासी नेता नंदकुमार साथ 30 अप्रैल को एक बार फिर हर वर्ग के लोगों की जुबान पर आ गए हैं। इस बार इस बेबाक नेता ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गरीबों के लिए उदार नीतियों ने जबरदस्त प्रभावित किया है। इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी में वर्षों पुरानी पहचान को दरकिनार करते हुए नई पारी की शुरुआत कर दी है। अपने सिद्धांत से कभी भी समझौता नहीं करने वाले इस आदिवासी नेता को करीब से जानने वाले जशपुर का घोलेंग कांड, कांसाबेल का गुरजोर में पुलिस गोली कांड, मध्यप्रदेश के विधायक विजय शाह के साथ पुलिस ज्यादती जैसे बड़े मामलो को कभी भी नहीं भुलाया जा सकता। विधायक विजय शाह ऐसा प्रकरण था जिसको नंदकुमार साय ने विधानसभा में तथ्यों के साथ उठा कर पुलिस अधीक्षक सहित 18 कर्मचारियों को दंडित कराया है। इसके अलावा नंदकुमार साय ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने हत्याकांड के 32 मामलों की पुनः जांच करा कर 24 मामलों में दोषियों को सजा दिलवाई है। कमल छोड़ कर कांग्रेस का हाथ को पसंद करने वाले इस नेता का फरसाबहार के भगोरा गांव में बगैर दरवाजे का कच्चा घर देख कर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे अपनी आंखों के आंसुओं को नहीं रोक पाऐ थे। उन्होंने कहा था कि नंदकुमार आप को राजनीति की ऊंचाईयों पर जाने से कोई नहीं रोक सकता है। शायद अब कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस नेता की कुशाग्र बुद्धि का लाभ लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में सफलता के अमिट निशान बनाएंगे।
नंदकुमार साय की जुबान से
धूमिल नहीं है लक्ष्य मेरा , अम्बर समान यह साफ है।
उम्र नहीं है बाधा मेरी, मेरे रक्त में अब भी ताप है।
सहस्त्र पाप मेरे नाम हो जावे. चाहे बिसरे मेरे काम हो जायें।
मेरे तन-मन का हर एक कण इस माटी को समर्पित है।
मेरे जीवन का हर एक क्षण जन सेवा में अर्पित है।
तीन बार लोकसभा, दो बार दोराज्यसभा के सांसद रहे नन्द कुमार साय ने 30 अप्रैल को भाजपा से अपना त्यागपत्र ट्वीट कर छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल लाने के बाद अपना मोबाइल बंद कर दिया. विधायक नन्द कुमार साय 1997 से 2000 तक मप्र भाजपा अध्यक्ष, 2001 से 2003 तक छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व 2003 से 2006 तक छतीसगढ़ भाजपा अध्यक्ष रहे हैं। छत्तीसगढ़ के प्रथम नेता प्रतिपक्ष, तीन बार विधायक व अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति आयोग भारत सरकार रहे नन्द कुमार साय का पार्टी छोड़ने के निर्णय से छग भारतीय जनता पार्टी के लिए निश्चित ही करारा झटका है। इस घटना के बाद भाजपा के वरिष्ट नेता असहज महसूस करने लगे हैं। नंदकुमार साय की तरह भाजपा के अन्य आदिवासी नेताओं के चेहरे पर भी उपेक्षा का दर्द स्पष्ट पढ़ा जा सकता है। जिसको लेकर छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन ने गोपनीय तरीके से समीक्षा शुरू कर दी है। भाजपा संगठन के क्रिया कलाप से पार्टी का एक बड़ा वर्ग खासा नाराज तो है, पार्टी संगठन मंत्री से लेकर हाईकमान भी अब अपने कार्यकर्ताओं में नाराजगी दूर करने पर पहल कर सकता है। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि आखिर ऐसी क्या स्थिति निर्मित हो गई कि नन्द कुमार साथ जैसे जनाधार वाले बड़े नेता को आखिर क्यों पार्टी छोड़ना पड़ा। वे छत्तीसगढ़ के ही नहीं अपितु देश में भाजपा के एक बड़े चेहरे व तेजतर्रार आदिवासी नेता थे। वे पार्टी की चिंता किए बगैर ही सदैव आदिवासी हितों के लिये लड़ते रहे, विष्णुदेव साय को प्रदेश अध्यक्ष पद से विश्व आदिवासी दिवस के दिन हटाने बड़े मुखरता के साथ विरोध करने वाले नन्द कुमार साय हाल ही में आदिवासियों के आरक्षण मामले में धरना में बैठकर भारतीय जनता पार्टी को सकते में डाल दिए थे। चुनाव को बहरहाल छः महीने बाकी है लेकिन राजनीति की बिसात जिस अंदाज में बिछने लगी है उसे देखकर कहा जा सकता है कि आने वाला चुनाव रोचकता के साथ-साथ आक्रामक भी होगा।