Home Chhattisgarh नई शिक्षा नीति से बच्चों में होगा अच्छे संस्कार का विकास

नई शिक्षा नीति से बच्चों में होगा अच्छे संस्कार का विकास

by Niraj Tiwari

केंद्रीय विद्यालय प्राचार्य और नवोदय विद्यालय प्राचार्या ने  पत्रकारवार्ता कर दी जानकारी

रायगढ़। एन ई पी को लेकर गुरुवार को केंद्रीय विद्यालय रायगढ़ पत्रकार वार्ता आयोजित की गई जिसमें स्कूल के प्राचार्य हरिलाल प्रधान और नवोदय विद्यालय की प्राचार्य अनुराधा शर्मा ने पत्रकारों से चर्चा की इस दौरान उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को बरकरार रखते हुए 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों, जिनमें एसडीजी 4 शामिल हैं, के संयोजन में शिक्षा व्यवस्था, उसके नियमन और गवर्नेस सहित सभी पक्षों के सुधार और पुनर्गठन का प्रस्ताव रखती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रत्येक व्यक्ति में निहित रचनात्मक क्षमताओं के विकास पर विशेष जोर देती है। यह नीति इस सिद्धांत पर आधारित है कि शिक्षा से न केवल साक्षरता और संख्याज्ञान जैसी बुनियादी क्षमताओं के साथ-साथ उच्चतर स्तर की तार्किक और समस्या समाधान संबंधी संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास होना चाहिए बल्कि नैतिक सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी व्यक्ति का विकास होना आवश्यक है।

प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में यह नीति तैयार की गयी है। ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा और दर्शन में सदा सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना जाता था। प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य सांसारिक जीवन अथवा स्कूल के बाद के जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञान अर्जन नहीं बल्कि पूर्ण आत्म ज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था। तक्षशिला, नालंदा, और वल्लभी जैसे प्राचीन भारत के विश्व स्तरीय संस्थानों ने अध्ययन के विविध क्षेत्रों में शिक्षण और शोध के ऊंचे प्रतिमान स्थापित किये थे और विभिन्न पृष्ठभूमि और देशों से आने वाले विद्यार्थियों और विद्वानों को लाभान्वित किया था। इसी शिक्षा व्यवस्था ने चरक, सुश्रुत, आर्यभट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य ब्रह्मगुप्त, चाणक्य, चक्रपाणि दत्ता, माधव, पाणिनि, पतंजलि, नागार्जुन, गौतम, पिंगला, शंकरदेव, मैत्रेयी,गार्गी और चिरुवल्लुवर जैसे अनेकों महान विद्वानों को जन्म दिया। इन विद्वानों ने वैश्विक स्तर पर ज्ञान के विविध क्षेत्रों जैसे गणित, खगोल विज्ञान, धातु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और शल्य चिकित्सा सिवि इंजीनियरिंग, भवन निर्माण, नौकायान निर्माण और दिशा ज्ञान, योग, ललित कला, शतरंज इत्यादि में प्रामाणिक रूप से मौलिक योगदान किये। भारतीय संस्कृति और दर्शन का विश्व में बड़ा प्रभाव रहा है। वैश्विक महत्व की इस समृद्ध विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए न सिर्फ सहेज कर सरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था द्वारा उस पर शोध कार्य होने चाहिए, उसे और समृद्ध किया जाना चाहिए और नए नए उपयोग भी सोचे जाने चाहिए।

नयी शिक्षा नीति को सभी विद्यार्थियों के लिए चाहे उनका निवास स्थान कहीं भी हो, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करानी होगी। इस कार्य में ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रह रहे समुदायों, वंचित और अल्प- प्रतिनिधित्व वाले समूहों पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होगी। शिक्षा बराबरी सुनिश्चित करने का बड़ा माध्यम है और इसके द्वारा समाज में समानता, समावेशन और सामाजिक-आर्थिक रूप से गतिशीलता हासिल की जा सकती है। ऐसे समूहों के सभी बच्चों के लिए परिस्थितिजन्य बाधाओं के बावजूद, हर संभव पहल की जानी चाहिए जिससे वे शिक्षा व्यवस्था में प्रवेश भी पा सके और उत्कृष्ट प्रदर्शन भी कर सकें।

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