Home Chhattisgarh आनंद निलयम आश्रम में 8 सालों से मनाया जा रहा चैत्र नवरात्र 

आनंद निलयम आश्रम में 8 सालों से मनाया जा रहा चैत्र नवरात्र 

by Niraj Tiwari

नौ दिनों तक रामचंडी यज्ञ के साथ होती है भागवत और रामकथा 

रायगढ़। जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गढ़उमरिया में विश्वात्म चेतना परिषद एवं ट्रस्ट के द्वारा आनंद निलयम आश्रम में चैत्र नवरात्र के अवसर पर विगत 8 वर्ष से लगातार चैत्र नवरात्र धूमधाम से मनाया जा रहा है। जिसमें स्वामी सत्य प्रज्ञानंद सरस्वती ट्रस्ट के मुख्य पीठ बलांगिर उड़ीसा से पहुंचकर व्यासपीठ पर विराजमान होकर अपने श्रीमुख से भागवत और रामकथा का वाचन प्रतिदिन शाम को कर रहे हैं। उक्त जानकारी ट्रस्ट के जिला अध्यक्ष सुरेश शर्मा ने दी।

चर्चा के दौरान अध्यक्ष सुरेश शर्मा ने बताया कि विश्वात्म चेतना परिषद एवं ट्रस्ट की मुख्य 5 गतिविधियां शिक्षा, स्वास्थ्य,श्रम,सेवा और साधना है। जिसके अंतर्गत 5 स्कूल का संचालन हो रहा है। रायगढ़ आनंद निलयम आश्रम ग्राम गढउमरिया में भी शुरुआत से स्कूल संचालन हो रहा था लेकिन कोविड काल के दौरान स्कूल संचालन बंद कर दिया गया। आगामी समय में पुनः स्कूल प्रांगण में संचालित करने की योजना बनाई जा रही है। वासंतिक नवरात्र के आयोजन पर स्वामी सत्य प्रज्ञानंद सरस्वती जी ने बताया कि प्रतिवर्ष सात्विक ढंग से रामचंडी यज्ञ का आयोजन किया जाता है। जिसमें प्रतिदिन आसपास क्षेत्र समेत रायगढ़ शहर से सैकड़ों श्रद्धालुओं पहुंचकर देवी कथा, रामकथा और प्रवचन का श्रवण करके पुण्य के भागी बनते हैं। सभी के लिए ट्रस्ट के द्वारा भंडारा का आयोजन भी किया जाता है। सभी भजन, कीर्तन के साथ मां भगवती के भंडारे का प्रसाद भी ग्रहण करके जाते हैं।

शारदीय और वासंती नवरात्र पूजा पूरे विश्व में मनाई जाती है। हम सभी हिंदू नववर्ष मातृ वंदना,मातृ उपासना और मातृ सेवा से आरंभ करते हैं। मां की उपासना से हमें शारीरिक रूप से स्वास्थ्य इत्यादि का लाभ तो मिलता ही है साथ ही आत्मिक बल भी मिलता है जिससे सांसारिक, भौतिक और आध्यात्मिक यात्रा हो उसमें भी सफलता मिलती है। धर्म और धार्मिकता के संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए स्वामी जी ने बताया कि शुद्ध आचार, शुद्ध चिंतन और शुद्ध विचार यह सभी धर्म के अंतर्गत आते हैं।  धर्म कभी भी किसी को नुकसान पहुंचाता है धर्म हमेशा एक राजमार्ग है जो व्यक्ति को परोपकार की ओर लेकर जाता है। विभिन्न समुदायों के बीच सामंजस्य और सहयोग को बढ़ावा देने के विषय में आचार्य जी ने कहा कि सभी की अपनी मनोभावना है संसार में भिन्नता सभी जगह पर है यदि कोई समुदाय विशेष के हित की भावना रखता है तो आपसी मतभेद पैदा होता है सभी के बीच पारस्परिक सहयोग और सहचर्य का वातावरण पैदा करने के लिए कुछ मूल बिंदुओं पर विचार करने की आवश्यकता है। जैसा सुख सभी को चाहिए तो सभी सुख, शांति और उन्नति के लिए कार्य करना यदि ऐसी भावना, प्रेम आत्मिक लगाव हो तो आपसी सामंजस्य स्थापित हो सकता है। उन्होंने आगे बताया कि भक्ति और ज्ञान के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति होती है। इंसान अपना कर्म करे और अहंकार को त्याग कर सर्वत्र में भगवान को देखे तथा भगवान को सर्वत्र में देखे तो यही मुक्ति का सबसे सरल मार्ग है।

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