तिरंगे की बिक्री में छूट का प्रावधान नहीं फिर भी डाकघर में रियायत पर बिक रहे
शर्तों के साथ मिला अधिकार, उद्योगपति नवीन जिंदल के मेहनत का परिणाम
रायगढ़। देश में भले ही हर भारतीय को राष्ट्रध्वज फहराने का अधिकार मिल गया हो किन्तु ध्वज निर्देशष्टीकरण के नियमों से अभी तक लोग अनजान हैं। यही वजह है कि संसद से रियायती दर पर तिरंगे की बिक्री को अपमान मानकर प्रतिबंधित करने के बावजूद राष्ट्रीय पर्व के अवसरों पर छूट के साथ राष्ट्रध्वज की बिक्री हो रही है। अमानक साइज और नकली झंडों की आवक ने राष्ट्रध्वज के सम्मान पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। जिस झंडे के बिक्री का अधिकार केवल खादी भंडार को है वह तिरंगा डाकघरों में रियायत दर पर मिल रहा है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं। केसरिया रंग सबसे ऊपर, सफेद बीच में और हरा रंग सबसे नीचे है।ध्वज की लंबाई.चौड़ाई का अनुपात 3.2 है सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है।भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया।
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों,कार्यालयों और फैक्ट्रियों आदि संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर,बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते हैं,बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कड़ाई से पालन करें और तिरंगे के सम्मान में कोई कमी न आने दें। उल्लेखित है कि जनवरी 2002 मे उद्योगपति नवीन जिंदल ने तिरंगे को जन अस्मिता से जोड़ते हुए न्यायालय में लड़ाई लड़ी और कोर्ट ने अपने फैसले मे आम जनता को वर्ष के सभी दिनों झंडा फहराने की अनुमति दी गयी।
इस प्रकार है नियम और मापदण्ड
राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादी में ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता है।भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है।पहली बार राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए।1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत कड़े हैं। केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है। झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी.टाट। खादी के
विभाग को अमानक ध्वज की जानकारी नहीं
जानकारी देते हुए मुख्य डाकघर के डाकपाल रमेश कुमार देवांगन ने बताया कि रायपुर आरएमएस से तिरंगा झंडा की सप्लाई आ रही है। अब तक रायगढ़ प्रधान डॉकघर मे लगभग 4 हज़ार झंडों की बिक्री हो चुकी है। रायगढ़ जशपुर और सांरगढ़ के कुल 32 उपडॉकघरों और 422 शाखा डाकघरों में भी बिक्री के लिए भेजा गया है। जिसकी सेल का आंकड़ा अभी नहीं आया है। दो बाई डेढ़ के आकार के साढ़े 32 हजार शार्ट क्लॉथ के झंडे आए हैं जो 25 रुपए प्रति नग की दर से बिक रहे हैं। तिरंगे के गुणवत्ता की जानकारी नहीं है। विभाग केवल आदेश का पालन कर रहा है। रविवार को भी झंडे की बिक्री जारी रही ।