Home Raipur स्मृति शेष : कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर

स्मृति शेष : कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर

by Niraj Tiwari


बड़े शौक से सुन रहा था जमाना , तुम्ही सो गये दासता कहते – कहते

रायगढ़। छत्तीसगढ़ की माटी में रची-बसी एक कला और साहित्य की एक सोंधी महक 9 जून को अलविदा हो गई और अपने पीछे छोड़ गई एक बड़ी मायूसी। कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर के निधन की खबर सुनते ही कला प्रेमियों और साहित्य जगत में मायूसी छा गई।अति सौम्य और शांत व्यक्तित्व वेदमणि गुरुजी ने बीते 13 मार्च को जीवन के 90 बसंत पूर्ण किये थे।

इस अवसर पर उनके द्वारा स्थापित उनकी अपनी संगीत की प्रयोगशाला लक्ष्मण संगीत विद्यालय में देर रात तक गीत-संगीत का शानदार आयोजन हुआ था।अपने शिष्य कलाकारों और गणमान्य जनों की बधाई स्वीकारते हुए वेदमणि सिंह ठाकुर के चेहरे पर पहली बार कुछ ऐसे भाव नजर आये,मानों वो कह रहे हैं कि अब जीवन मे ज्यादा वक्त नहीं बचा है। वे जीवन पर्यंत ज्ञान का अक्षय स्त्रोत रहे। कला-संस्कृति की बारीकियों को परत दर परत खोलकर रखने में उनका कोई सानी नहीं था। नृत्य,संगीत,कला और संस्कृति को नया रंग देने के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहे।रायगढ़ की कलात्मक संस्कृति को विश्व पटल पर ख्याति दिलाने में वेदमणि गुरुजी का अहम योगदान था।बीते वर्ष 2024 के चक्रधर महोत्सव में उन्होने एक अद्भुत” नृत्य विधा कि रचना की थी जिसमें गंगावतरण की प्रस्तुति देख कलारसिक कौतूहल से भर उठे थे। उसका बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण रायगढ़ घराने की मशहूर कथक नृत्यांगना “बासंती वैष्णव” के द्वारा किया गया था।वे आजीवन श्रेष्ठतम कला चिंतक रहे,जिन्होंने सारा जीवन भारतीय कला के विविध पक्षों को जानने-समझने में लगा दिया।

सदैव रस और आनंद में डूबे रहे

धीरे-धीरे हमारे बीच से ज्ञान के अभूतपूर्व साधकों की पीढ़ी अब उठती जा रही है।दशकों तक ज्ञान साधना करने वाले वे विद्वान,जिन्हें दुनिया ने मान दिया,यह वेदमणि सिंह ठाकुर(1913-2025) जैसे साधक विद्वान के लिए ही संभव था कि वह कला में मौन के महत्व को रेखांकित कर सके। 13 मार्च 1913 को स्व. जगदीश सिंह ठाकुर के घर जन्मे तीन भाई-बहनों में बड़ी संतान वेदमणि सिंह ठाकुर नटवर विद्यालय में सरकारी शिक्षक भी रहे।उन्होंने अपना समूचा जीवन भारतीय कला के विविध पक्षों को जानने-समझने को अर्पित कर दिया।दुनिया ने भी उनकी कला-दृष्टि और कला-इतिहास संबंधी उनके चिंतन का लोहा माना।अपने निवास दरोगापाड़ा में वर्ष 1985 में वेदमणि गुरुजी ने लक्ष्मण संगीत विद्यालय की स्थापना की।तबला , मृदंग,घटमवाद्य,पखावज, हारमोनियम,सितार आदि ढेरों वाद्य यंत्रों पर सिद्धहस्त वेदमणि गुरुजी ने शास्त्रीय संगीत में कई तरह के अनोखे ताल और लय का सृजन किया एंव रचनाएं रची।साथ ही हजारों हजारों गीत_गजलों की रचना की।उनके गीत गज़ल स्थानीय समाचार पत्रों में भी निममित तौर पर प्रकाशित होते रहे। अपने कई कद्रदानों से ‘बेदम’गुरुजी इन्ही रचनाओं के जरिये पंहुचते थे। उनके गजल अथवा रुबाई के बगैर लोकल समाचार पत्रों के पेज अधूरे जान पड़ते थे।हिंदी,छत्तीसगढ़ी से लेकर उड़िया,पंजाबी और अन्य कुछ भाषाओं में वेदमणि सिंह की रचनाएं देश के बड़े सांस्कृतिक मंचों से लेकर फिल्मी दुनिया तक में मशहूर हुई हैं‌। पान के शौकीन वेदमणि गुरुजी के तबस्सुम पर तैरती मुस्कान उनकी साफगोई की मिसाल थी तो कला के मंच पर उनकी मौजूदगी आयोजन को महोत्सव मे बदल देती थी।रस के साथ आनंद के भाव को जोड़ते हुए उन्होने भारतीय परंपरा में रसिक,रसवंत और रसास्वादन जैसी धारणाओं को लगातार रेखांकित किया। उनके अनुसार भारतीय परंपरा में ‘रस” का तात्पर्य कला और उससे दर्शक के भीतर जागृत होने वाला भाव है। रायगढ़ की लोक संस्कृति के उत्थान में वेदमणि सिंह के अभूतपूर्व योगदान में कला और ज्ञान के प्रति उनके गहरे अनुराग ने बडी भूमिका निभाई। साहित्य और कला की वे चलती – फिरती यूनिवर्सिटी थे। जिसे उनका थोडा भी सानिध्य मिला,उस पर गुरुजी ने ज्ञान का मोती लुटाने में कोई कंजूसी नहीं की। देश की परतंत्रता के दौर से लेकर आजाद भारत की 21वीं सदी के पल-पल के बदलते दौर के साक्षी वेदमणि गुरुजी ने इतना कुछ देखा और सीखा था कि उनके अनुभव से ग्रंथ लिखे जा सकते थे।उनका निधन कला जगत और रचनात्मक सांस्कृतिक प्रतिरोध के लिए भी एक बड़ी क्षति है। वह एक दुर्लभ किस्म के व्यक्ति थे,उन्होंने बेहद दिलचस्प विचार दिए हैं। कलाकारों की भावी पीढ़ी को बेदम गुरुजी ने जो कुछ दिया है वह उनकी कठिन साधना का प्रतिफल है जो वो ही कर सकते थे।

दुनिया भर में बेदम के शिष्य

करीब 8 दशकों तक कला और साहित्य की साधना करते हुए कलागुरु वेदमणि सिंह ठाकुर ने लक्ष्मण संगीत विद्यालय के माध्यम से कलाजगत में नई पौध न केवल अंकुरित की बल्कि पुष्पित और पल्लवित की।आज उनके सानिध्य में तैयार हुए विद्यार्थी न केवल भारत के राष्ट्रीय मंचों पर बल्कि अमेरिका , लंदन,सिडनी, न्यूयार्क,केलिफोर्निया आदि देशों में छत्तीसगढ़ की मिट्टी को सुवाषित कर रहे हैं। वेदमणि गुरुजी के अवसान ने देश के बाहर भी कलाकारों को मर्माहत किया है।

महत्वपूर्ण उपलब्धियां —-

1- प्रयाग संगीत विद्यालय से तबला में ” प्रवीण ” की उपाधि।
2- गायन,वादन,लेखन आदि सभी विधाओं में पारंगत ” कलागुरु ” की उपाधि।
3- बनारस में 1964 में आयोजित आल इंडिया संगीत कला काम्पटीशन में तबला मे द्वीतीय स्थान।
4- 20 हजार से अधिक रचनाओं का सृजन जिनमें 10 हजार गजलें,4 हजार से अधिक सरस्वती वंदना व छत्तीसगढ़ी,ओडिसी एवं पंजाबी रचनाएं शामिल।
5- आल इंडिया संगीत विश्वविद्यालय का परीक्षक (एक्जामिनर ) नियुक्त किये गये।
6- लक्ष्मण संगीत महा विद्यालय की स्थापना जिसकी अनुसांगिक शाखाएं बिलासपुर व भोपाल में संचालित हैं।
7- एतिहासिक चक्रधर समारोह के संस्थापक सदस्य।

स्मृति से मिलेगी आजीवन प्रेरणा

अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में रचनात्मक संस्कृति के कला पुंज वेदमणि गुरुजी अब भले ही शरीर में हमारे बीच मौजूद नहीं है लेकिन उनकी स्मृति प्रतिक्षण नई नस्लों को प्रेरित करती रहेगी। उनके समर्पित संकल्पों की पौधशाला लक्ष्मण संगीत विद्यालय कला और साहित्य की ऐसी पौध तैयार करती रहेगी जो दुनिया भर में बेदम के स्वप्न को साकाय स्वरुप प्रदान कर सके।आज गुरुजी को याद करते हुए उनके लाखों चाहने वालों की नम आंखें परमेश्वर से उन्हें अपने श्री चरणों मे स्थान प्रदान करने की प्रार्थना कर रही हैं।

रुकी – रुकी सी नजर आ रही है लफ्ज ए हयात ,
ये कौन उठ के गया है मेरे सिरहाने से ।।

।। अलविदा कलागुरु ।।

हरेराम तिवारी
रायगढ़

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