रायगढ़। नव संवत्सर के प्रारंभ दिवस पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सुभाष चैक में भारत माता की आरती की गई। जिसमें सैकड़ों धर्म प्रेमियों ने हिस्सा लेकर कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाया।
इस अवसर पर विश्व हिंदू परिषद मार्गदर्शक समिति के वरिष्ठ सदस्य महंत त्रिवेणीदास महाराज ने कहा कि पाश्चात्य शैली में नववर्ष मनाना बिल्कुल असांस्कृतिक अतार्किक एवं अव्यवहारिक है। हमें इस पाश्चात्य परंपरा का त्याग करते हुए अपनी सनातनी परंपरा का निर्वाह करना चाहिए। वहीं कहा कि हिन्दू पंचांग के बारह महीनों में पहले चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वर्ष भर की सभी तिथियों में इसलिए सबसे अधिक महत्व रखती है, क्योंकि इसी तिथि पर ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। इस तिथि को प्रथम स्थान मिला, इसलिए इसे प्रतिपदा कहा गया है। जब ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रारंभ किया, उस समय इसे प्रवरा तिथि सूचित किया था, जिसका अर्थ है सर्वोत्तम। इस अर्थ में यह वर्ष का सर्वोत्तम दिन है, जो सिखाता है कि हम अपने जीवन में सभी कामों में, सभी क्षेत्रों में जो भी कर्म करें, उनमें हमारा स्थान और हमारे कर्म लोक कल्याण की दृष्टि से श्रेष्ठ स्थान पर रखे जाने योग्य हों। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है।
आज के दिन हुआ था श्रीराम राज्याभिषेक
वहीं महंत त्रिवेणीदास महाराज ने नववर्ष प्रतिपदा मनाने के महत्वपूर्ण पौराणिक तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसी दिन वासंती नवरात्री का प्रारम्भ होता है। नवसंवत्सर का आरम्भ भी इसी दिन होता है। वहीं श्रीराम राज्याभिषेक, युधिष्ठिर राज्याभिषेक, झुलेलाल जयंती, स्वामी दयानंद का जन्मदिवस, गुरु अंगददेव का जन्मदिवस भी इसी दिन होता है। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना भी इसी दिन की गई थी। आद्यासरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस तथा महाराज विक्रमादित्य द्वारा नूतन संवत्सर प्रारंभ भी इसी दिन से किया गया था।